Wednesday 30 March 2011

ग्लूकोमा से आँखों को बचाए, कैसे?

NAV BHARAT TIMES के अनुसार 

आप भी सावधान होकर इससे सीख ले और बचे, समय से इलाज कराये.
छुपकर नजर छीनता है ग्लूकोमा
13 Mar 2011, 1021 hrs IST,नवभारत टाइम्स

यह मर्ज छुपकर वार करता है। मरीज को पता तब चलता है जब उसका इतना नुकसान हो चुका होता है, जिसकी भरपाई नामुमकिन है, लेकिन अगर थोड़ा चौकस रहें तो वक्त रहते इस मर्ज को न सिर्फ पकड़ा जा सकता है, बल्कि बढ़ने से भी रोका जा सकता है। बात हो रही है ग्लूकोमा या काला मोतिया की, जिसके बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए बीते हफ्ते ग्लूकोमा अवेयरनेस वीक मनाया गया। एक्सपर्ट्स की मदद से ग्लूकोमा के बारे में विस्तृत जानकारी दे रहे हैं प्रभात गौड़ :  
क्या होता है ग्लूकोमा ?
ग्लूकोमा को आम भाषा में काला मोतिया भी कहा जाता है। ग्लूकोमा को समझने के लिए पहले आंख से जुड़ी एक बेसिक जानकारी। हमारी आंख एक गुब्बारे की तरह होती है जिसके भीतर एक तरल पदार्थ भरा होता है। आंख की मेकनिजम यह है कि यह तरल पदार्थ लगातार आंख के अंदर बनता रहता है और उससे बाहर निकाला जाता रहता है। आंख के इस तरल पदार्थ के पैदा होने और बाहर निकलने के इस प्रोसेस में जब कभी दिक्कत आती है तो आंख का प्रेशर बढ़ जाता है। आंख में कुछ ऑप्टिक नर्व भी होती हैं जिनकी मदद से किसी ऑब्जेक्ट के बारे में संकेत दिमाग को भेजे जाते हैं। आंख का बढ़ा प्रेशर इन ऑप्टिक को डैमेज करने लगता है और धीरे-धीरे नजर कमजोर होती जाती है। आंख के बढ़े हुए प्रेशर का मतलब यह कतई नहीं है कि उस शख्स को ग्लूकोमा हो गया, लेकिन इससे ग्लूकोमा हो जाने का खतरा बढ़ जाता है।

ग्लूकोमा के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके चलते नजर का जो नुकसान हो गया, उसका कोई इलाज नहीं है। अगर पता न चले तो यह मर्ज धीरे धीरे बढ़ता रहता है और ज्यादा बढ़ जाने पर अंधेपन की भी नौबत आ सकती है। हां, अगर इसका पता वक्त रहते चल जाए तो आगे और नुकसान से बचने के लिए इलाज और देखभाल की जा सकती है। 
कितनी तरह ग्लूकोमा?
ओपन ऐंगल ग्लूकोमा: जब कभी आंख के बढ़े प्रेशर के चलते आंख की ऑप्टिक नर्व खराब हो जाती है और उसके चलते नजर खराब होती है तो उसे ओपन ऐंगल ग्लूकोमा कहा जाता है। यह क्रॉनिक है। धीरे धीरे नजर कमजोर होती जाती है। सबसे ज्यादा कॉमन है। इसमें तरल पदार्थ को ड्रेन करने वाली कनैल ब्लॉक हो जाती है जिससे आंख का प्रेशर बढ़ जाता है।

ऐंगल क्लोजर ग्लूकोमा: यह अक्यूट होता है। इसका अचानक अटैक होता है और मरीज को पता चलता है कि उसकी नजर कमजोर हो चुकी है। अटैक के बाद तेज दर्द होता है।

लक्षण
ओपन ऐंगल ग्लूकोमा के मोटे तौर पर कोई लक्षण नहीं होते। इसमें कोई दर्द नहीं होता और न ही नजर में कोई कमी महसूस होती है। अगर ग्लूकोमा का इलाज न किया जाए तो लोगों को अपने साइड की वस्तुओं को देखने में दिक्कत होने लगती है। ग्लूकोमा में काफी समय बाद तक सेंट्रल विजन को कोई नुकसान नहीं होता। इसमें नुकसान होता है साइड विजन को और धीरे-धीरे यह सेंट्रल विजन की तरफ आता जाता है। जब सेंट्रल विजन प्रभावित होने लगती है तो इसका मतलब है कि देर काफी हो चुकी है। ग्लूकोमा के कुछ शुरुआती लक्षण ये हो सकते हैं :

- चश्मे के नंबर में बार-बार बदलाव।
- पूरे दिन के काम के बाद शाम को आंख में या सिर में दर्द होना।
- बल्ब के चारों तरफ इंद्रधनुषी रंग दिखाई देना।
- अंधेरे कमरे में आने पर चीजों पर फोकस करने में परेशानी होना।
- साइड विजन को नुकसान होना। बाकी विजन नॉर्मल बनी रहती हैं।

किसे हो सकता है
- अगर किसी के परिवार में किसी को ग्लूकोमा रहा है, तो उसे ग्लूकोमा होने के चांस हो सकते हैं। यह आनुवांशिक मर्ज है।

- 40 साल की उम्र के बाद ग्लूकोमा होने के चांस बढ़ जाते हैं। 40 की उम्र के बाद आंखों का रेग्युलर चेकअप कराते रहें। हो सकता है इस उम्र के लोगों को लगे कि उनकी नजर मोतियाबिंद की वजह से कमजोर हो रही है, लेकिन हो सकता है कि नजर की कमजोरी ग्लूकोमा की वजह से हो। ऐसे में सलाह यह है कि 40 की उम्र के बाद आंखों का रुटीन चेकअप कराते रहें।

- जो लोग अस्थमा या आर्थराइटिस जैसे रोगों के लिए काफी लंबे समय तक स्टेरॉयड ले रहे हैं, उन्हें ग्लूकोमा होने की आशंका बढ़ जाती है।

- कभी आंख का कोई जख्म हुआ हो या कोई सर्जरी हुई हो, तो भी ग्लूकोमा होने की आशंका बढ़ती है।

- जिन लोगों को मायोपिया है, डायबीटीज है या ब्लडप्रेशर घटता-बढ़ता रहता है, उनमें दूसरे लोगों के मुकाबले ग्लूकोमा से होने वाला नुकसान ज्यादा हो सकता है।

- यह बच्चों में भी हो सकता है।

कैसे पता लगाते हैं
प्रेशर: ग्लूकोमा की जांच के लिए सबसे पहले आंख का प्रेशर चेक किया जाता है। प्रेशर अलग-अलग लोगों में अलग-अलग हो सकता है। ऐसा नहीं कह सकते कि इतना प्रेशर नॉर्मल है। किसी में कुछ नॉर्मल हो सकता है तो किसी में कुछ। वैसे, 12 से 22 के बीच नॉर्मल माना जाता है, लेकिन यह कोई नियम नहीं है। अगर आंख का प्रेशर बढ़ा हुआ है, तो फिर नीचे दिए गए चार टेस्ट किए जाते हैं।

गोनियोस्कोपी: इस टेस्ट में आंख का ऐंगल चेक करने के लिए टेस्ट किया जाता है।
फील्ड चार्टिंग: यह टेस्ट आंख की फील्ड ऑफ विजन चेक करने के लिए होता है।
एचआरटी: हाइडलबर्ग रेटिना टोमोग्रफी टेस्ट में ऑप्टिक नर्व की पिक्चर ले ली जाती है। इससे ग्लूकोमा के बारे में जल्दी भविष्यवाणी की जा सकती है।

कॉर्निया की मोटाई: कॉर्निया की मोटाई भी चेक की जाती है। कुछ लोगों में कॉर्निया पतली हो सकती है। ऐसे लोगों को ग्लूकोमा होने की आशंका ज्यादा होती है। कॉर्निया पतली हो, तो प्रेशर भी कम आता है और मोटी हो तो प्रेशर ज्यादा आता है। इस प्रेशर को मोटाई के हिसाब से मॉडिफाई करके असली प्रेशर निकाला जाता है।

आमतौर पर इन टेस्टों में कुल मिलाकर पांच हजार रुपये का खर्च आता है।

इलाज क्या है

अलोपथी में इलाज
ग्लूकोमा की वजह से हो चुके नुकसान और नजर की कमी को वापस नहीं लाया जा सकता है। इसका कोई इलाज नहीं है। जो नुकसान हो गया, वह हो गया। ऐसे में इलाज सिर्फ इस बात के लिए किया जाता है कि आगे कोई नुकसान न हो। महत्वपूर्ण बात यह है कि इसका इलाज जिंदगी भर चलता है। इसमें सबसे पहला काम यह किया जाता है कि आंख के प्रेशर को कम कर दिया जाए। आंख के प्रेशर को कम करने के लिए डॉक्टर मरीज को आई-ड्रॉप्स डालने की सलाह देते हैं।

मरीज की स्थिति के मुताबिक हो सकता है एक से ज्यादा आई-ड्रॉप्स डालने को कहा जाए। कई बार इसके साथ कुछ खाने की दवाएं भी दी जाती हैं। जब तक डॉक्टर कहे, दवा लेते रहना चाहिए और लगातार आंखों की जांच कराते रहना चाहिए। एक बार ग्लूकोमा होने पर हर छह महीने या एक साल पर आंखों की जांच करानी चाहिए, जिससे पता चलता रहे कि ट्रीटमेंट सही चल रहा है या नहीं। कुछ डॉक्टर हर तीन महीने बाद भी चेकअप कराने की सलाह देते हैं। रेग्युलर चेकअप कराने आते वक्त डॉक्टर ग्लूकोमा का पता लगाने के लिए किए गए टेस्टों में से आमतौर पर दो टेस्ट ही करते हैं।

कई बार ऐसा भी होता है कि दवा से बात नहीं बनती। कभी दवा के साइड इफेक्ट्स होने लगते हैं तो कभी दवा महंगी हो सकती है या फिर मरीज ही दवा से छुटकारा पाना चाह सकता है। ऐसे में डॉक्टर लेसर ट्रीटमेंट या ऑपरेशन कराने की सलाह देते हैं।

ऐंगल क्लोजर: इसका इलाज सबसे आसान है। शुरुआत में दवाई देते हैं, लेकिन दवाओं से नजर कम होती जाती है। बाद में लेसर सर्जरी की जाती है। इसमें एक आंख की सर्जरी का खर्च आमतौर पर तीन हजार रुपए आता है। रिस्क की कोई गुंजाइश नहीं है, पूरी तरह सेफ है। लेसर ट्रीटमेंट के बाद भी मरीज को रेग्युलर चेकअप के लिए जाना पड़ता है और यह चेक कराते रहना होता है कि कहीं ग्लूकोमा दोबारा तो डिवेलप नहीं हो रहा है।

ओपन ऐंगल: दवाओं से बात न बने या मरीज उकता जाए तो डॉक्टर ऑपरेशन की सलाह देते हैं। यह एक बड़ा ऑपरेशन होता है। इसमें 15 से 20 हजार रुपए का खर्च आता है। ऑपरेशन के हफ्ते भर बाद आंख नॉर्मल हो जाती है। रिस्क कोई नहीं होता। इस ऑपरेशन के बाद भी रेगुलर चेकअप कराते रहना चाहिए। 


 होम्योपथी
होम्योपथी में हालांकि ऐसे दावे भी किए जाते हैं कि ग्लूकोमा की वजह से नजर का जो नुकसान हो गया है, उसकी भरपाई की जा सकती है, लेकिन ऐसे मामले बेहद कम हैं। आमतौर पर विशेषज्ञों का मानना यही है कि ग्लूकोमा की वजह से एक बार हो चुके नुकसान को ठीक करना बेहद मुश्किल है।

हां, दवाओं के जरिए आगे होने वाले नुकसान को रोका जा सकता है और इसके अच्छे रिजल्ट्स सामने आए हैं। वैसे, खुद होम्योपैथिक डॉक्टरों का कहना है कि अगर होम्योपथिक ट्रीटमेंट चला रहे हैं तो भी किसी नेत्र रोग विशेषज्ञ से रेगुलर चेकअप कराते रहना जरूरी है, जिससे ठीक तरह यह पता चलता रहे कि मर्ज की असल स्थिति क्या है। नीचे कुछ दवाएं दी जा रही हैं, जो ग्लूकोमा के मरीजों को दी जाती हैं, लेकिन इन्हें किसी डॉक्टर की देख-रेख में ही लेना चाहिए।

Osmium Mettalicum 30 (ओसमियम मेटलिकम) : अगर मरीज को दोनों ही आंखों में ग्लूकोमा है, दोनों आंखों में तेज दर्द की शिकायत रहती है और रोशनी अच्छी नहीं लगती तो इस दवा को दिया जाता है। इसकी चार से पांच गोलियां दिन में तीन बार लेनी चाहिए और ऐसा तीन से चार महीने तक करना चाहिए। गोलियों का साइज 30 हो।

Physostigma 30 (फाइसोस्टिगमा) : अगर ग्लूकोमा दोनों आंखों में है और आंखों में भारीपन महसूस होता है पलकें खोलने में दिक्कत होती है या पानी आता है तो इस दवा को दिया जाता है। चार से पांच गोली दिन में तीन बार तीन से चार महीने तक दें।

Spigelia 30 (स्पाइजेलिया) : अगर ग्लूकोमा बाईं आंख में है या बाईं आंख में पहले आया है और माइग्रेन की भी हिस्ट्री रही है तो इस दवा की चार से पांच गोली रोजाना दिन में तीन बार देनी चाहिए।

Glonine 30 (ग्लोनाइन) : ग्लूकोमा के साथ-साथ अगर बढ़ा हुआ बीपी है, सूरज की रोशनी सहन नहीं होती, सिरदर्द के साथ उलटी भी होती है, तो ग्लूकोमा के इलाज के लिए इस दवा को दिया जाता है। लेने का तरीका वही है, चार से पांच गोली दिन में तीन बार।

आयुर्वेद
आयुर्वेद में काला मोतिया के इलाज के लिए सर्जरी की ही बात कही गई है, लेकिन कुछ तरीकों को अपनाया जाए तो इससे आगे होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। आयुर्वेद के ये तरीके नेत्र रोग विशेषज्ञ की देखरेख में इलाज कराने के साथ-साथ ही किए जा सकते हैं।

- सुबह जागने के बाद मुंह में ठंडा पानी भरकर आंखों पर ठंडे पानी के छपाके मारें।

- एक चम्मच त्रिफला चूर्ण, आधा चम्मच देसी घी और एक चम्मच शहद मिला लें। जिन लोगों को काला मोतिया नहीं भी है, वे भी इसे ले सकते हैं। इससे आंखों के कई दूसरे रोगों में भी फायदा मिलता है।

- एक चम्मच घी, दो काली मिर्च और थोड़ी सी मिश्री मिलाकर दिन में तीन बार ले सकते हैं।

- गाजर, संतरे, दूध और घी का भरपूर इस्तेमाल करें।

कुछ तथ्य
- दुनिया भर में 10 में से 1 आदमी ग्लूकोमा से पीडि़त है। दुनिया भर में करीब साढ़े छह करोड़ लोगों को ग्लूकोमा है।

- भारत में एक करोड़ से ज्यादा लोगों को ग्लूकोमा है। इनमें से करीब 10 लाख लोग अंधेपन का शिकार हो चुके हैं।

- भारत में अंधेपन के 100 में से 12 केस ग्लूकोमा की वजह से हैं।


No comments:

Post a Comment